Thursday, November 30, 2006

इन्तिहा

तुम पूछते हो मेरे प्यार की इन्तिहा क्या है,
चाह कर भी मैं कुछ कह नहीं पाता हूं ।
जब से तुम वो तस्वीर ले गये हो बन्द आँखों से,
खोल कर आँखें मैं रह नहीं पाता हूं ।
वो कहते हैं के तू कोई बन्धा तो है नहीं,
मै तो दरिया हूँ, फिर क्यूँ बह नहीं पाता हूँ ।

2 comments:

manish said...

maza aa gaya.bilkul waise hi likha hai jaise maine san do hazaar chaar main chitiyon sa rengata sannata...... likha tha. wahi dard wahi jazbaat aur wahi kalpana.
tum jaroor aage badhoge.

Anonymous said...

yadi main us dard jazbaat kalpana ka hazarvan hissa bhi prapt kar saka to dhanya ho jaoonga.