Saturday, November 25, 2006

सर्दी का पता तब लगा, जब ख़ून अपना जम गया.

तोड़ कर घड़ियाँ हम समझे, कि वक़्त थम गया.
पिछड़े जो ज़माने से, तो जाना कि अपना हम गया.

भर भर के कटोरों से सीचीं थी फ़सलें कभी,
आज पड़ समंदर का पानी भी तोड़ा कम गया.

बैठ के अंगारों पे समझते रहे कि गर्मी है,
सर्दी का पता तब लगा, जब ख़ून अपना जम गया.

सुप्रेम त्रिवेदी "विद्रोही"

2 comments:

Ankur Chandra said...

waah..waah..

Anonymous said...

zehnaseeb; zarranawazi ka shukriya