विद्रोही भिक्षुक
यह ब्लॉग मेरी कविताओ और अन्य रचनाओ का संग्रह है.
एक द्रवित हृदय और सजग मस्तिष्क की गुनगुनाहटें, आवाज़े, पुकारें, चिल्लाहटें और पीड़ाएँ.........
Saturday, November 25, 2006
गिरा तो आँसू, बचा तो मोती है
पतझड़ के झरे पात शाख रोती है,
बुझे सूरज की कहाँ धूप होती है.
लील कर उजाला जो रात सोती है,
हर अंधेरे मे सवेरे की बात होती है.
जो उजड़े चमन मे बरसात रोती है,
गिरा तो आँसू, बचा तो मोती है.
सुप्रेम त्रिवेदी "विद्रोही "
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