Tuesday, February 27, 2007

हम तुम मिलकर साथ चलेंगे॰॰॰॰॰

तो क्या मन्ज़िल दूर बहुत है,
मरुस्थल है धूल बहुत है,
विश्वासों का कोश बचा है,
हम दिन में हम रात चलेंगे,
हम तुम मिलकर साथ चलेंगे॰॰॰॰॰
ले हाथों में हाथ चलेंगे॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
झुरमुट में से राहें होंगी,
पदचापों की आहें होगी,
पर रस्ते चुपचाप रहेंगें,
हम तुम करते बात चलेंगे,
ले हाथों में हाथ चलेंगे॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
हम तुम मिलकर साथ चलेंगे॰॰॰॰॰
राहों पर सागर आ जाऐँ,
घिर आऐँ घनघोर घटाऐँ,
कृष्ण मेघ क्रोधित हो जायेँ,
चाहे हो बरसात चलेँगे॰॰॰॰॰॰॰॰
हम तुम मिलकर साथ चलेंगे॰॰॰॰॰
ले हाथों में हाथ चलेंगे॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
काँटों को तुम ताक में रखना,
मन्ज़िल को तुम आँख में रखना,
विक्षोभों से तुम ना डरना,
हर खतरे से लड़ जाऐँगे,
कर के दो-दो हाथ चलेंगे,
हम दिन में हम रात चलेंगे,
हम तुम मिलकर साथ चलेंगे॰॰॰॰॰
ले हाथों में हाथ चलेंगे॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
आँधी आऐँ अड़ना होगा,
तूफानों से लड़ना होगा,
पर तुम थक कर हार न जाना,
तुम आख़िर तक साथ निभाना,
मुश्किल हो हालात चलेँगे,
हम तुम मिलकर साथ चलेंगे॰॰॰॰॰
ले हाथों में हाथ चलेंगे॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
हम तुम मिलकर साथ चलेंगे॰॰॰॰॰

Monday, February 26, 2007

अभी बाकी है

कुछ कह रही है ये हवा रोज़ की तरह,
कहीं किसी कोने में फिर याद सी जागी है।

तेरा साथ न होने का कोई गिला नहीं,
पर तेरी दूरी का एहसास अभी बाकी है।

तुम भी देखते हो छिप-छिप कर, छिपाता नहीं है परदा,
सिलवटें कह रही हैं, इस बार तू झाँकी है।

यहाँ तो ज़िन्दगी चलती है अपनी चाल से तेज़,
वहाँ तेरी रफ़्तार का अन्दाज़ अभी बाकी है।

यूँ तो तोड़ रखी हैं सारी चहारदीवारियाँ,
पर हवा की वो हल्की सी दीवार अभी बाकी है।

दिख जाते हो तुम, फिर हो जाते हो गुम,
पर रात कह रही है, कुछ बात अभी बाकी है।

कुछ न बोलोगे तुम सब जान जाऊँगा मैं,
ख़ामोशी कह रही है, अल्फ़ास अभी बाकी है।

झूठ कहती है दुनिया कि मुझे मौत आ गई है,
मैं जानता हूँ मैं जिन्दा हूँ, के तेरे सीने में कुछ साँस अभी बाकी है।

Saturday, February 17, 2007

मेरी तुरबत इन सारे शहरों मे, आबाद सबसे ज़्यादा है।

कल बुझा गया वो दुनिया के तमाम चिराग़,
आज उसके घर में रौशनी सबसे ज़्यादा है।

कभी इस मिट्टी में भूखे इन्सान पिसे थे,
आज इन खेतों की पैदावार सबसे ज़्यादा है।

वो कहते हैं के तू छोटा है, तजुर्बा ही क्या तुझे,
फिर क्यूँ ये शिकन, मेरे माथे पे सबसे ज़्यादा हैं।

किसी ने बरग़द काटा, तो कोई घास ही नोच लाया,
मेरे शहर में कातिलों की, तादात सबसे ज़्यादा है।

कल जलसा था जनमदिन का, आज फातिये की घडी़ है,
मेरी तुरबत इन सारे शहरों मे, आबाद सबसे ज़्यादा है।

Saturday, February 10, 2007

माना कि नफरतें मुझसे हज़ार हैं


माना कि नफरतें मुझसे हज़ार हैं,

साथ निभाने को, कुछ और यार हैं,

यादें मेरी दफ्न हैं ग़ुमनाम शहर में,

कोई और साथ है सब रात सहर में,

फिर भी तुमको प्यार है उस दूर वीराने से,

मिलते थे जहाँ हम कभी छिप-छिप के ज़माने से।


दीवारों पर मेरे-तेरे हैं नाम अब तलक,

दरख्त भी खड़े है कुछ गवाह अब तलक,

वादों को भूलने का हुनर तेरे साथ है,

हाथों में डालने को कोई और हाथ है,

पर हरफ़ दिल का मिटता नहीं यादें मिटाने से.....

हाँ तुम्हें है प्यार उस दूर वीराने से,

मिलते थे जहाँ हम कभी छिप-छिप के ज़माने से।