कल बुझा गया वो दुनिया के तमाम चिराग़,
आज उसके घर में रौशनी सबसे ज़्यादा है।
कभी इस मिट्टी में भूखे इन्सान पिसे थे,
आज इन खेतों की पैदावार सबसे ज़्यादा है।
वो कहते हैं के तू छोटा है, तजुर्बा ही क्या तुझे,
फिर क्यूँ ये शिकन, मेरे माथे पे सबसे ज़्यादा हैं।
किसी ने बरग़द काटा, तो कोई घास ही नोच लाया,
मेरे शहर में कातिलों की, तादात सबसे ज़्यादा है।
कल जलसा था जनमदिन का, आज फातिये की घडी़ है,
मेरी तुरबत इन सारे शहरों मे, आबाद सबसे ज़्यादा है।
1 comment:
As usaual very gud trivedi ji...
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