Friday, January 1, 2010

नए साल में

उधर सुना था कोई,
मांग रहा था नयी सुबह नए साल में, उज्ज्वल धरती,
अप्रदूषित जल, गुनगुनी धुप और खुशहाल चहरे.
बे-इमान रहा होगा,
या फिर बीमार. बीमारी भी ऐसी लाईलाज जो दोहराती है हर साल,
लौट आती है हर बार
इसी दिन.
गजब बीमारी, बीमारियों में बीमारी, बीमारी उम्मीद की.
पार साल मैंने तो इलाज करवा लिया था.
महंगा था, मुश्किल भी.
पर बीमारी भी तो फंनेखां कम कहाँ थी.
अब कहाँ आते हैं मुझे सपने, खुशहाली के, रौशनी के, धूप और चांदनी के.
और अनजान खून देख के कुछ महसूस भी कहाँ करता हूँ मैं.
जैसे उस दिन के ढाई सौ, जब मैं सिनेमा देख रहा था.
या उस दिन के सौ, जब मैं बॉस से प्रमोशन की बात कर रहा था.
या उस दिन के तिरसठ, जब तेरी गोद मैं चाँद सितारों से भर रहा था.
या उस देर रात की पार्टी वाले सात.
लेकिन फिर भी,
खुदा ज़रा मौतें कम कर दे नए साल में
इस साल टीवी में कुछ नया देखने का मन है बस.
..................................सुप्रेम