Sunday, March 4, 2007

कलम सर ख़ुद का करना है, खुद ही फ़रमाँ सुनाना है

मैं तुझको याद भी रखूँ, या तुझको भूल भी जाऊँ,
ये बहता दाग काजल का, तेरा कन्धे से छुड़वाऊँ,
तेरी बेवफाई का किस्सा, ज़माना सारा कहता है,
तेरा गीला दुपट्टा ये, मैं किस-किस को दिखलाऊँ,
मैं तेरी याद को प्यालों में भरकर पी तो सकता हूँ,
गर आँसू ही जीवन है, तो मनभर जी तो सकता हूँ,
तुझे तो याद को तिनका बता कर रोना पड़ता है,
वो आँखें खोलकर रातों को, नकली सोना पड़ता है,
मुहब्बत अब भी ताज़ी है, ये तेरी साँस कहती है,
मगर लब झूठ कह देंगे, उन्हें घर भी बचाना है,
ये तेरी ही अदालत है, तू अपना आप है मुन्सिफ,
कलम सर ख़ुद का करना है, खुद ही फ़रमाँ सुनाना है
......................सुप्रेम त्रिवेदी "बर्बाद"