माना कि नफरतें मुझसे हज़ार हैं,
साथ निभाने को, कुछ और यार हैं,
यादें मेरी दफ्न हैं ग़ुमनाम शहर में,
कोई और साथ है सब रात सहर में,
फिर भी तुमको प्यार है उस दूर वीराने से,
मिलते थे जहाँ हम कभी छिप-छिप के ज़माने से।
दीवारों पर मेरे-तेरे हैं नाम अब तलक,
दरख्त भी खड़े है कुछ गवाह अब तलक,
वादों को भूलने का हुनर तेरे साथ है,
हाथों में डालने को कोई और हाथ है,
पर हरफ़ दिल का मिटता नहीं यादें मिटाने से.....
हाँ तुम्हें है प्यार उस दूर वीराने से,
मिलते थे जहाँ हम कभी छिप-छिप के ज़माने से।
2 comments:
..
कविताओं और चित्र का संगम सुन्दर है।
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