मेरे हिस्से की हवा तो छीन लोगे जबरन,
मगर अपने हिस्से की साँस कहाँ से लाऒगे।
मगर अपने हिस्से की साँस कहाँ से लाऒगे।
रख लोगे घर मे समंदर को भरकर,
पीने के लिये जो ज़रूरी है, वो प्यास कहाँ से लाओगे।
मानता हूँ जला लोगे दुनिया के तामाम चिराग,
अंधेरा जो फैलाती है, वो रात कहाँ से लाओगे।
चलो माना कि हज़ार जिरह कर लोगे,
मगर जो कहनी है, वो बात कहाँ से लाओगे़।
सुप्रेम त्रिवेदी "विद्रोही "
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