निशानात पांवों के दो दर्ज हैं,
सहरा में अकेले हम ही हम नहीं.
हवाएं औसत से ज्याद गर्म हैं,
ये आहें हमारी अकेले नहीं.
बात तुम खूब कहते थे, कहते हो, कहते रहोगे,
चुप रहना यूँ हमारी भी फितरत नहीं.
न ओढ़न, न बालों, न पैरहन का सलीका,
सामाँ हमारे भी बिखरे कम नहीं.
ये छुप के रो लिए, वो मुंह धो के सो सो लिए,
पलकें हमारी भी कुछ कम नम नहीं.
हकीकत में ही जिला सकता तो तसवीरें बनाता क्यों खुदा,
खरीदार ख्वाबों के भी कुछ कम नहीं.
नज़्म लिखते हम हैं, पढ़ते तुम हो, बिकने दूर तक जाती हैं,
बीमार इस लाइलाज के फ़क़त एक हम नहीं.
6 comments:
बहुत खूब सर जी ... पिछले पांच सालों में आपकी कलम की तेज़ धार और भी तेज़ हो गयी... :)
Kabhi kabhi kalam chaltee hain ... kataw kam dhaar jyada :-)
Bahut acche bahut acche.
Bahut samay baad aisa kuch padhne ko milaa.
Great job.
Dude Hum tau aapke aur aapkee kavitao kai hamesha sai hi fan the.The last I heard abt you when you were out of India. R u back. We can correspond through my e-mail id i.e arora.gaurav1981@gmail.com
हकीकत में ही जिला सकता तो तसवीरें बनाता क्यों खुदा,
खरीदार ख्वाबों के भी कुछ कम नहीं.
kya mast likha hai sir !! sukriya !
amazing..........
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