ज़हर की दुकान पे जो भीड़ लगी देखी,
सोचा मैंने कौन हैं ये लोग अविवेकी,
अरे! एक, न ही दो, न ही तीन, न ही चार,
भीड़ थी कि भीड़ थी कि कई सौ हज़ार,
हर आदमी था खुश, करता था आगे पुश,
देख के इतना रश, मैं तो खा गया था गश.
मैंने पूछा "क्या सामूहिक आत्महत्या का है अरमान?"
या फिर देख के आये हो तुम लोग "तीस मार खान"?
वो बोले नहीं, आलू, प्याज, नमक के बाद अब ज़हर की है बारी.
क्योंकि मरने को मांगेगी जनता सारी.
कहीं न शुरू हो जाये इसकी भी कालाबाजारी,
इसलिए करते हैं एडवांस में खरीदारी.
6 comments:
yn lajawab!!
bahut accha vision hai ..
bahut hi jabardast.. mar hi daloge..
It is my first time to hit your blog. but I can say "Keep your creativity intact forever and spread it all over the world"."
Bahut badhiya.....
good one on present scenario..........
आधुनिकीकरण,शहरीकरण,भौतिकवाद,आई.पी.एल,नीलामी ,सेक्स और सेंसेक्स बनाम आलू ,टमाटर और प्याज और आम आदमी की खोखली सूखी तड़्पी हुई मौत ।
बेहतरीन कटाक्ष के लिए साधुवाद !
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