हमारे बचपन के अन्धविश्वास
खैर मेरे और आपके अंधविश्वासों में ज़मीन आसमान का फरक हो सकता है, नंबर एक तो मैं कोंवेंट एजुकेटेड नहीं हूँ. अपनी जिन्दगी की शुरुआत ही पाटी-बुदिका से हुई थी, फटी हुई हाफ पैंट और टेरीकोट की नई बुशर्ट गले में तख्ती और हाथ में सेंठे की कलम से छोट कर जब हम शहर आये तो माहौल ही एक दम नया था. because की spelling याद करने में हमने इतना समय लगा दिया की अंडे में से चूज़े मिकल आयें. और फिर दौर आया नया ज़माना नया ... नए स्कूल में हमने अपने बचपन के ज़हीन अंधविश्वासों से सामना किया...
१. पेंसिल की छीलन को सहेज कर रखना. उसे इकठ्ठा करना. और एक दिन उसे दूध में डाल कर उबालना. ऐसा करने से रबड़ बन जाती है. न जाने किनी ही पेंसिलें हमारे इस प्रयोग की कुर्बानी चढ़ गयी. और न जाने कितने ही तमाचे हमारे गलूँ पर जड़ गए...
२. पांच या दस के सिक्के को रेल की पत्री के नीचे रख देना तो वो चुम्बक बन जायेगा. कसम से कभी रेल की पटरी ही नसीब न हुई.
३. और वो बच्चे उठाने वाला बाबा उसे न तो आज तक किसी ने देखा और न देख पायेगा..शायद मेरी मां के सिवा.
6 comments:
Wow Bhai Sahab Kafi Dino Baad.. Kuch Padhne ko Mila Warna Aapki orkut profile ke Chakkar kaat kaat ke to joote (Sorry Keyboard) Ghis Gaya tha. Keep it up Suprem Bhaiya Aapki Rachnayen Padhne ke liye bahut utawle Rahte hain.
sahee hai bhai lage rahoo kabhi to kuch naya invent kar he dalooge. baki sab thik thak hai sab je rahe hain aur free ka hawa pani pe rahee hain. ram ram
vinashi baba
ekdam nostalgic bana diya bhai tumne.. :-)
by the way.. i really liked this one.. this is your first link that forwarded to some other friends of mine.. :-)
and i remember what Scott Adams(creator of Dilbert) once said - A good writer is one who expresses something that you already know in much better way than you could have done yourself.
This was a very good blog. really straight from the heart.. well written
Oi. Parabéns por seu excelente blog. Gostaria de lhe convidar para visitar meu blog e conhecer alguma coisa sobre o Brasil. Abração
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