कुछ कह रही है हवा रोज की तरह,
कहीं किसी कोने में फ़िर याद सी जागी है.
तेरा साथ न होने का कोई गिला नहीं,
पर तेरी दूरी का एहसास अभी बाकी है.
तुम भी देखते हो छिप-छिप कर, छिपाता नहीं है परदा,
सिलवटें कह रही हैं, इस बार तू झांकी है.
दिख जाते हो तुम, फ़िर हो जाते हो गुम,
पर रात कह रही है कुछ बात अभी बाकी है.
कुछ न बोलोगे तुम, सब जान जाऊँगा मैं,
खामोशी कह रही है, अल्फास अभी बाकी है.
झूठ कहती है दुनिया कि मुझे मौत आ गयी है, मैं जानता हूँ मैं जिंदा हूँ,
क्यों के तेरे सीने में कुछ साँस अभी बाकी है.
aabaad....
1 comment:
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