Sunday, October 20, 2013

"वो लास्ट सेमेस्टर"

वैसे इस कहानी को लिखने से पहले मुझे "डिसक्लेमर" देना बहुत ज़रूरी है वरना तरह तरह के सवाल ज़माना पूछेगा, लोग और लुगाइयाँ तरह तरह के कयास लगायेंगे. हजारों दिल टूट जायेंगे, लाखों सर फूट जायेंगे.
डिसक्लेमर: इस कहानी का सत्य एवं वास्तविकता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है. पात्र एवं घटनाएं पूरी तरह काल्पनिक हैं. यदि पात्रों के नाम अथवा हरकतें आपसे मेल खाते प्रतीत हों तो इसे अपनी बदनसीबी समझ कर भूल जाएं और चाहते हुए भी ये मान लें की आप एक बड़े ही आम इंसान हैं की आपका जीवन मेरी कल्पना के कितना करीब है. वैसे मेरी कल्पना आज कल किसके कितने करीब है ये तो मैं भी जानना चाहता हूँ.
कहानी शुरू करता हूँ कल्पना से, कल्पना आज भी बड़े बड़े डग भरती हुई पहली क्लास शुरू होने से पहले ही पहुँच जाना चाहती थी. मैं आज तक ये नहीं जान पाया की वह सबसे पहले जाकर वहाँ क्या करती थी. अव्वल तो इसके लिए मुझे उससे पहले उठाना पड़ता और दुअल ये की उठने के लिए मुझे रात मे सोना पड़ता. लेकिन आज मैंने उसे पकड़ ही लिया. अब पकड़ कैसे लिया? इससे ये बात तो पूरी तरह साफ हो गयी कि आज रात मैं सोया नहीं था. हम सारी रात बास्की* ग्राउंड में फ्रेंच इकोनोमी पर डिस्कशन कर रहे थे. काफी सुबह हो गयी है इसका पता हमें चेहरे पर पडी चिलचिलाती धूप से लगा और नौ बज गए हैं इसका पता कल्पना की चाल से. खैर दोस्तों को कल्टी मार के मैं उसके पीछे पीछे चल पड़ा एक गज़ब की चाल मेरे दिमाग मे घर चुकी थी।


"अरे! कल्पना सुनो, "

"क्या , बोलो! " उसके अंदाज़ में इतना तिरस्कार था, खैर मैं इसका आदी था, एक टॉपर को इसका अधिकार था और मैं उस अधिकार का पूर्ण सम्मान करता था।

"मेरी कल श्रीवास्तव सर से बात हुई और वो कह रहे थे की हमें कल तक रिपोर्ट जमा करनी है।"

" तो मैं क्या करूं"

"यार तुम तो जानती हो की मैंने अभी तक एक पेज भी नहीं लिखा है""

तो यहाँ खड़े क्या कर रहे हो? क्लास तो तुम्हे वैसे भी नहीं आना है तो रूम पर जा कर रिपोर्ट ही बनाओ।""

यार २०० पेज कैसे लिखे जा सकते हैं एक दिन मे ""२०० नहीं ४०० और २-डी Filters का मिला के ५० पेज और""मुझसे नहीं होगा। मैं सोच रहा हूँ कल गोला मार दूँ""पागल हो गए हो क्या??" उसने इतनी ज़ोर से चिल्ला कर कहा कि गैलरी से निकल रहा एक पूरा हुजूम हमें नोटिस किए बिना न रह सका। "और तुमने तो फर्स्ट मिड-टर्म भी नहीं दिया था""कल्पना, अब तुम ही मुझे फेल होने से बचा सकती हो.""नहीं इस बार तो हम एक पन्ना नहीं लिखेंगे""प्लीज़ ... ". 17-02-2008


1 comment:

Himanshu said...

abe..poori kyon nahi ki kahani??