Thursday, September 12, 2013

मुख-पुस्तक पर इंग्लिस विंग्लिस

एक मित्र हमारे हैं, अक्सर मुख-पुस्तक पर भ्रांतियां फैलाते पाए जाते हैं। बड़े सनसनीखेज खुलासे करते हैं और अंग्रेजी की मदर-सिस्टर यूनिफिकेशन करने में उन्हें खासकर के महारथ हासिल है. जैसे ---

-- एक दुर्दांत हत्यारे ने फांसी पर लटका कर आदमी को मारा -- आगे प्रश्नचिह्न ??
फिर कोई उनकी बड़ी सी पोस्ट पढ़ कर उन्हें बताता है --

--भाई जिसे तुम हत्यारा कह रहे हो वास्तव में वो जल्लाद है, ये उसकी नौकरी है। अपनी पोस्ट खुद तो पढो ...
-- नहीं, I is not talking abot see the killer or the is being killed. I am toking about फाँसी Plz check. See urself. The point I am making is -- Shuld we use rope as a method of killing when judge orders killing or should we use power chairs or shud we use toxic injections. this is a main question of society?

भाई हर rope  फांसी नहीं होती, हर पॉवर इलेक्ट्रिक नहीं होती और हर टोक्सिन lethal नहीं होता

बेचारे जैसा हिंदी में सोचते हैं, वैसा ही अंग्रेजी में तर्जुमा कर देते हैं
उदाहरणार्थ -- I am doing dancing. (मैं नृत्य कर रहा हूँ) 

एक बार उन्हें यह वाक्य अंग्रेजी में अनुवाद करना था

 -- वह एक बार गया तो ऐसा गया की लौट कर ही नहीं आया --
    ''ही वैण्टा-वैण्ट तो ऐसा वैण्ट कि केमे नॉट''

आइये आज हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर संकल्प करें की हम जब हिंदी में सोचेंगे तो उसे हिंदी में ही लिखने में शर्म नहीं महसूस करेंगे।

गाँधी बाबा एक बार फिर मर जाते हैं..

कहते हैं सब नाथू ने थी बापू जी को गोली मारी,
बंधु आज लेकिन तुमको हम सच्चाई बताते हैं,
क्रूर था वो, खूनी था वो, उसने शरीर छीना ,
पर हम आत्मा पे छुरियाँ चलाते हैं

साल भर तो स्वर्ग में वो चैन से बिता देते हैं,
जन्म दिवस पे फिर  वो दुखी मन जाते हैं,
खून सने हाथों से जो फुलवा चढ़ा देते हो,
गाँधी  बाबा एक बार फिर मर जाते हैं

Wednesday, September 11, 2013

सोर्स

बात पुरानी है. मैं, अप्पू और सोनू मेरी लंगडी लूना पर क्रिकेट-किट लादे पी.एन.टी. ग्राउंड की ओर रेंगते चले जा रहे थे। गियर वाली गाड़ी, बिना कागज, बिना डी.एल., ट्रिपलिंग; चाक-चौकन्ना रहना बहुत ज़रूरी था। पर वक़्त बुरा हो तो ऊँट पर बैठे लंगड़े आदमी को भी पामेरियन काट लेता है। तो हमारा पामेरियन, सब-इन्स्पेक्टर दोहरे सहायता चौकी पे घात लगाये बैठा था। कोशिश बहुत की हमने, गाड़ी मोड़  लें, कट लें लेकिन पामेरियन उछल के काट लिहिस।
कहाँ?
सर, बस पी.एन.टी. तक जा रहे थे।
लाइसेंस, प्रदूषण, आर.सी., इंश्योरेंस निकालो, नहीं है तो गाड़ी खड़ी करो। सीज़ करो।
सर ... सर ...
ट्रिपलिंग का तेरह सौ, हेलमेट नहीं है तीन सौ, उसका तो चालन कटेगा
हम सर सर करते रहे, वो हमें इगनोर करता रहा। अपनी कमाई कर के वो हमारी तरफ मुखातिब हुआ।
कहाँ रहते हो?
मैंने लीड ली, मुझे पता था क्या बोलना है, "सचिवालय कालोनी में, सर"
"क्या करते हैं पिताजी तुम्हारे?"
"सर, होम में जॉइंट-सेक्रेटरी हैं," होम पर मैंने जोर दिया। उसकी मुख-मुद्रा कुछ नर्म हुई
"और तुम्हारे?", उसने अप्पू से पूछा
"सर, जनसत्ता के एडिटर हैं" अब तक वह अपनी बुलेट से उतर चुका था।
"और तुम्हारे?", "कह दो गवर्नर हैं", वो हंसने लगा
"नहीं सर, गवर्नर के पी. ऐ. हैं "
"सही है भाई, अबे तिवारी, हियाँ आओ तुमका दिखाई इतना सोर्स लिए ये लूना पे चल रहे हैं", "इनके पिताजी संयुक्त-सचिव हैं होम में, इनके एडिटर हैं और इनके राज्यपाल के पी. ऐ."
"बेटा, तुम लोग लूना काहे चला रहे हो? इतना सोर्स ले के चल रहे हो, तुम लोगों को तो आदमी जोत के चलना चाहिए"
 उसने इशारा किया, हम निकल लिए                                      

Wednesday, September 4, 2013

मेरा प्रिय शिक्षक


गाय के बाद अपने ऊपर निबन्ध लिखवाने के क्षेत्र में 'मेरा प्रिय शिक्षक' और 'मेरा प्रिय मित्र' अग्रगण्य हैं। दोनों ही हर कक्षा में, हर परीक्षा में अपने ऊपर निबन्ध लिखवाते नजर आते हैं।  तिमाही नहीं तो छमाही, नहीं तो सालाना, कभी न कभी तो आपको इन पर स्याही खर्चना ही पड़ेगा। गाय यदि निबंधों  के क्षेत्र का सर्वव्यापी, सर्वगोचर ईश्वर है, तो 'मेरा प्रिय शिक्षक' और 'मेरा प्रिय मित्र' कोई हाई स्टेटस इंद्र-विन्द्र टाइप देवता से कोई कम नहीं। दोनों का मुकाबला काफ़ी तगड़ा प्रतीत होता है, पर एक जगह जाकर 'मेरा प्रिय मित्र' कुछ ठिठक सा जाता है --
मेरे पास 'शिक्षक-दिवस' है, तुम्हारे पास क्या है?
मेरे पास 'फ्रैंडशिप डे' है
वो इंग्लिश के घंटे में, हिंदी के पीरियड में तुम्हारे पास क्या है? व्हाट हैव यू?
मेरा प्रिय मित्र चुपके से अपनी होम-मेड चीज़ सैंडविच खाने लगता है, मेरा प्रिय शिक्षक 'वाटरसाइड इन' में अपना कार्ड टैब पर लगा देता है।
अब चूंकि जीत शिक्षक की हो गयी है, फिर हमारा निबन्ध भी शिक्षक पर ही बनता है। (प्रिय उसमे से जान-बूझ कर हटाया गया है। अब इतना हमसे न हो पायेगा, शिक्षक पर निबन्ध भी लिख दें और उसको प्रिय भी कह  दें)
अब जब बात शिक्षक पर निबन्ध की चल ही गयी है, तो इस क्षेत्र में मेरे प्रिय पिताजी का योगदान भी उल्लेखनीय है। वैसे तो 'मेरे प्रिय पिताजी' स्वयं एक निबंधनीय विषय हैं, पर चिंता न कीजिये जब कह दिए हैं की शिक्षक पर लिखेंगे तो शिक्षक पर ही लिखेंगे। आदतानुसार थोडा-बहुत  भटकेंगे विषय से, लेकिन वो मात्र आपके मनोरंजन के लिये. उसे शिक्षक-गण अपना नितादर कतई न समझें। हाँ तो पिताजी का उल्लेखनीय योगदान आया सन् 1970 ईसवी में शिक्षक-दिवस पर, जब उन्हें सीतापुर जिले के कालेजों के लिए आयोजित लाला जोकू लाल स्मारक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में अपनी कविता 'तुम कहते हो खुद को टीचर, पर तुम हो निरे फटीचर' के लिए तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। हालाँकि मिल उन्हें पहला भी सकता था यदि आयोजक, 'न्यूनतम प्रतिभागियों की संख्या तीन होगी' इस शर्त के साथ समझौता करने को राजी होते।
शिक्षक एक बड़ा ही निरीह प्राणी है। और यदि वह शादीशुदा हो तो उसकी निरीहता, बदकिस्मती या पूर्व-जन्म के पाप भी कहला सकती है। ये गिरती हुई अर्थव्यवस्था और फिसलता हुआ रुपया यदि किसी चीज़ को देख कर गम खा लेते हैं तो वह शिक्षक की दशा ही है। कुछ विद्वानों का मत है की ईश्वर ने शिक्षक की रचना ही इसलिए की कि मनुष्य जाति पर अंकुश रखा जा सके। 'भय बिनु होइ न प्रीति' वाले दोहे में भय का 'भ' और 'य' दोनों ही शिक्षक की ही देन  हैं। मुझे तो लगता है कि एक शिक्षक के जीवन में बस खुशी का अवसर तभी आता है जब वह 13, 17 या 19 का पहाड़ा सुनता है या 'बोतल हिली और हिल-हिला  कर रह गयी' का ट्रांसलेशन। यदि वह छात्र जिससे उसे बिलकुल उम्मीद न हो, 19 का पहाडा सुना दे तो शिक्षक की भुजाएं फड़कने लगती हैं और उसके हाथ की 'अरहर की संटी' रक्त-पिपासु हो उठती है। अब उस छात्र से तब तक सवालात किये जाते हैं, जब तक फफक कर रो न पड़े। 'गुरु जी, मारो मारो मुझे और मारो'
शिक्षक पर लिखा हुआ कोई भी निबन्ध बिना पंडित सीता नारायण पांडे (एम . ए - इंग्लिश ) के जिक्र के उपसन्हरित नहीं हो सकता।
पण्डे जी बड़े मशहूर थे इंग्लिश का 'डफ' पेपर बनाने के लिए। वे सीनियर टीचर थे, हाई स्कूल, इंटर के नीचे बात करना भी उनकी शान के खिलाफ था। उनकी मानें तो फ़िराक गोरखपुरी से जरूर कोई चूक हुई थी, असल में हिंदुस्तान में इंग्लिश पौने तीन लोगों को आती थी और उसमे चार आना इनका भी था। खैर गिरती हुई अर्थव्यवस्था, कॉस्ट-कटिंग, और मंदी की चपेट से जब इंग्लैण्ड स्वयं नहीं बच पाया तो पांडे जी ने भी मन मसोस कर कक्षा छ: को पढ़ाना स्वीकार कर लिया। गाज गिरी सिक्स्थ-ए पर, वो भी शिक्षक दिवस के दिन। सबसे पहले हिंदी में वार्तालाप निषिद्ध हुआ, फिर अगले एक महीने तक हमने जाना कि इस देश का सर्वनाश निश्चित है क्योंकि देश उनसे कक्षा छ: को पढ़वा रहा है। फिर जब मुझे यह लगने लगा की यह जिच नहीं टूटेगी, तो एक दिन मैंने हिम्मत कर के बताया कि यह माध्यमिक शिक्षा बोर्ड है और यहाँ कक्षा छ: में इंग्लिश पहली बार पढाई जाती है। कृपया हमे एबीसीडी लिखना सिखाएं। मुआमला आगे बढ़ा, हम लेटर से वर्ड, वर्ड से सेंटेंस की ओर बढ़ने लगे और फिर आये सवाल-जवाब। पांडे जी सारे सवाल जवाब कापी पर लिखवाते थे. और बाहरफ़ उसे इम्तिहान में वैसे ही चाहते थे।
Q: Who is Sita?
A: Sita is Ramesh's daughter.

Q: What is she doing?
A: She is dancing.          
          
सालाना इम्तिहान में, गुरूजी ने बड़ा 'डफ' पेपर बनाया। दस-पंद्रह सवालों के बीच में एक सवाल था --
Q: What is she doing?

मैंने पूछा गुरूजी ये she कौन है?
कहा था न बहुत 'डफ' पेपर बनेगा, सही से पढ़ना ...

जय शिक्षक दिवस, जय महाराष्ट। 

Tuesday, September 3, 2013

टैबलेट



आज-कल टैबलेट  का बाज़ार बहुत गरम है . जहाँ देखो वहां टैबलेट  की धूम है . हमारे ज़माने में देह गरम होने पर टैबलेट  लेते थे।हलकी सी हरारत का अंदेशा हुआ नहीं कि मा ने सामने रख दी टैबलेट । टैबलेटों  में टैबलेट  सीतामाल टैबलेट  .

हालांकि  टैबलेटों  की  दुनिया में तमाम टैबलेट  आई-गईं  जैसे की पैञ्जोन,  एनासिन, विक्स -एक्शन फाइव 500 आदि इत्यादि। .

लेकिन जो रुतबा सीतामाल को प्राप्त था वो रुतबा कई शताब्दियों बाद सिर्फ एक  और टैबलेट  को प्राप्त हुआ आई-पैड।  iPad   ने हर सुनवाइये में ये बयां दिया  - ' योर ऑनर में इस अदालत में चीख चीख क कहूँगा की मैं टैबलेट  नहीं हूँ

लेकिन सितामाल इससे बेखबर थी .. वो बेफिक्री से कभी जुखाम- कभी बुखार और कभी नज़ले  और कभी मियादी से जंग कर रही थी . कभी 500mg की एक न हुई तो 250  की दो। या कभी 1000  की हुई तो रुमाल में रख कर दांतों से तोड़ ली .

लेकिन इन् सब नयी टैबलेटों  में बड़ा लफड़ा है . mg MB में बदल गया है और रेटिना डिस्प्ले, amoled screen और पता नहीं क्या क्या . इतने तो फीचर हैं की लगता है की दुनिया को परग्रही आक्रमण से बचाने का कोई हथियार हो।

राज्यों क मुख्यमंत्री हों या सिनेमा - हाल के संतरी सब क पास टैबलेट  है. कोई हाथ में पकडे है कोई जेब में डाले है कोई झोले में लटकाए है  . त्वरित उपचार के लिए मौजूद . हरारत हुई नहीं की टैबलेट  निकला . एक नयी तरह के बुखार का इलाज है . उसपर तुर्रा ये की ये बुखार भी इसी की देंन  है.  मर्ज भी इसी का दिया हुआ है और इलाज भी यही है।

विद्द्वानो का मत है की इस नए टेबलेट और प्रेम में भयंकर समानताएं  हैं . प्रेम भी कुछ इसी तरह से है . जख्म भी वही और मरहम भी वही . वो बिचारे विद्द्वान अपनी बात पूरी तरह समाप्त भी न कर पाए थे की भागते भागते एक और टेबलेट वहां आ गयी। मैंने कोतुहल वश उससे पूछा ' कौन ग्राम गोरी ?'

वो हाँफते हुए बोली की 'सुने हैं की यहाँ कुछ टेबलेट वब्लेट प्रेम व्रेम क बारे में विद्वान लोग चर्चा कर रहे हैं तो हम भी भागतीं हुई चली आई '

लेकिन गोरी तुम हो कौन ? वो बेचारी काफी काली हो चुकी थी लेकिन मैंने महिलोचित modesty का प्रयोग किया .
बोली हम भी टेबलेट हैं

कौनसी ?

संखिया की , हमको भी खा के प्रेमियों के गाँव के गाँव जान दिए हैं

बेहेन तुम्हारा जमाना गया। आज कल एक नये  तरीके के  टेबलेट से प्रेम जनमता है और आगे चल कर कोई और ही टेबलेट डिमांड करता है।

तो क्या प्रेमी जान नहीं देते?

नहीं बेहेन, अब वोए किस देते हैं . मिस देते हैं . नंबर देते हैं . चाभी देते हैं पर जान नहीं देते।

'तो मैं क्या करू कहाँ जाऊं?'

तुम कोई और देस जाओ जहाँ प्रेम में अभी भी जान हो। और न हो सके तो जोकू किराने की दूकान पे चली जाओ, वोए तुम्हे पीस क चूहेमार पुडिया बना देगा .

'लेकिन भैया तनिक हमे ये तो बता दो की हम अपने आने वाली नस्लों को क्या सिखाएं ? कोई ऐसा टेबलेट बताओ जिसमे स्कोप हो?'

मैंने धीरे से उसकी कान में कहा 'की आज कल बेहेन सिर्फ दो ही टेबलेट टॉप पे है ipad और ipill. इनका धंधा कभी मंदा नहीं होगा। एक प्रेम का उदगार है तो एक प्रेम की परिणति।

'तो भैय्या ये जो अखिलेस कर के हैं ये सब नौजवान लड़के बच्चों को कौनसा टेबलेट बाँट रहे हैं ?

'वो तो बड़ा खतरनाक टेबलेट है बेहेन , वो सोने का टेबलेट है . ये पिछले साठ सालों से वक्त वक्त पे हमे ऐसा टेबलेट बाँटते आ रहे हैं .'

'तो भैय्या क्या कायदा है इस टेबलेट का? सुबह साम , सुबह दुपहर साम, कैसे खाते हैं?'

नहीं बेहेन उसको पांच साल में एक बार खाया जाता है। फिर अगले पांच साल आदमी नाचे कूदे  कौनो फरक नहीं .

हे हे हे .. हंसने लगी वो, तो भैया उसको टेबलेट काहे कह रहे हाँ? वो तो गोली है। तो ऐसा कहिये न की वो गोली चुसाते हैं . टैबलेटों का नाम काहे ख़राब करते हैं? टैबलेट तो दमदार चीज़ है, जान ले सकती है, जान दे सकती है. न दिखावा है, न छलावा ... अब न कहियेगा टैबलेट बट  रहा है. कहिये गोली दे रहा है ....