आंसू झर-झर बह निकले हैं,
सन्नाटों में साँस रुकी है,
गला रुन्ध्र है लहू झलकता
और मेरी आवाज़ दबी है
अंजानो के इस जंगल में
सारे साथी रात सो गए
मुट्ठी भींची, शक्ति समेटी
तब तक मेरे हाथ खो गए
दीपक दिखता नखत चमकता
सन्नाटों में साँस रुकी है
गला रुन्ध्र है लहू झलकता
और मेरी आवाज़ दबी है.
सुन सकते हो सुनते जाओ
रुक सकते हो रुकते जाओ
हाथ बढ़ाता हाथ न आता
मैं कुछ चलता कुछ रुक जाता
कहने सुनने के झंझट में
जो कहनी थी बात रुकी है
गला रुन्ध्र है लहू झलकता
और मेरी आवाज़ दबी है.
एक द्रवित हृदय और सजग मस्तिष्क की गुनगुनाहटें, आवाज़े, पुकारें, चिल्लाहटें और पीड़ाएँ.........
Thursday, January 22, 2009
Sunday, January 11, 2009
आज रात मैं नींद से जागा...
कुछ भूल सा गया हूँ या .. अगर सही से याद हो किसी को या २००४ की 'सृजन' हो किसी के पास तो इसे सही करने में मदद करें
आज रात मैं नींद से जागा, भाग्य उदय कर उठा अभागा.
कल का दिन कुछ याद नहीं है, खोया-पाया ज्ञात नहीं है.
धड़कन दिल से दूर गयी थी, स्मृति मुझको भूल रही थी.
शरण मुझे रणभूमि ने दी थी, गोला उस गुल-आब ने दागा.
आज रात मैं नींद से जागा....
सपने मेरे टूट चुके थे, अपने मेरे रूठ चुके थे,
जीवन झूला झूल रहा था, अपने पथ को भूल रहा था,
अर्घ्य मेरा स्वीकार हुआ ना, ख़ुद पर भी अधिकार हुआ ना.
गाड़ी मेरी छूट रही थी, कोशिश कर पुरज़ोर मैं भागा.
आज रात मैं नींद से जागा....
गुलशन तपती रेत हो गए, पुष्प काल की भेंट हो गए,
चक्रवात ही चक्रवात थे, बांधे मुझको मोहपाश थे.
सब थे मिलकर नाच नचाते, नए नए थे खेल रचाते.
फ़िर टूटा कठपुतली धागा,आज रात मैं नींद से जागा...
जाग गया हूँ सोऊंगा न, प्राप्त किया खोऊंगा न ,
तरकश का निर्माण करूंगा, अब उसमे हर बाण रखूंगा,
हाँ मैंने हर आंसू त्यागा, आज रात मैं नींद से जागा.
....................... सुप्रेम त्रिवेदी "आबाद"
आज रात मैं नींद से जागा, भाग्य उदय कर उठा अभागा.
कल का दिन कुछ याद नहीं है, खोया-पाया ज्ञात नहीं है.
धड़कन दिल से दूर गयी थी, स्मृति मुझको भूल रही थी.
शरण मुझे रणभूमि ने दी थी, गोला उस गुल-आब ने दागा.
आज रात मैं नींद से जागा....
सपने मेरे टूट चुके थे, अपने मेरे रूठ चुके थे,
जीवन झूला झूल रहा था, अपने पथ को भूल रहा था,
अर्घ्य मेरा स्वीकार हुआ ना, ख़ुद पर भी अधिकार हुआ ना.
गाड़ी मेरी छूट रही थी, कोशिश कर पुरज़ोर मैं भागा.
आज रात मैं नींद से जागा....
गुलशन तपती रेत हो गए, पुष्प काल की भेंट हो गए,
चक्रवात ही चक्रवात थे, बांधे मुझको मोहपाश थे.
सब थे मिलकर नाच नचाते, नए नए थे खेल रचाते.
फ़िर टूटा कठपुतली धागा,आज रात मैं नींद से जागा...
जाग गया हूँ सोऊंगा न, प्राप्त किया खोऊंगा न ,
तरकश का निर्माण करूंगा, अब उसमे हर बाण रखूंगा,
हाँ मैंने हर आंसू त्यागा, आज रात मैं नींद से जागा.
....................... सुप्रेम त्रिवेदी "आबाद"
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