विद्रोही भिक्षुक
यह ब्लॉग मेरी कविताओ और अन्य रचनाओ का संग्रह है.
एक द्रवित हृदय और सजग मस्तिष्क की गुनगुनाहटें, आवाज़े, पुकारें, चिल्लाहटें और पीड़ाएँ.........
Saturday, May 5, 2007
रोते-रोते शाम सी हो जाती है
रोते-रोते शाम सी हो जाती है,
उम्र यूँ ही तमाम सी हो जाती है,
जब भी आना मेरे घर, तो रात में आना,
दिन में ये गलियाँ भी,
बदनाम सी हो जाती हैं।
...........Suprem Trivedi "barbaad"
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment