Thursday, January 18, 2007

अबके गदर का किस्सा नहीं, हिस्सा बनूँगा मैं



कुछ सन्नाटे बचा के रखे थे मैंने,
सोचता हूँ इस बार के मेले में बेच दूँगा मैं।

गर मिट्टी हो थोड़ी सी, तो उधार देना ऐ दोस्त,
इस बारिश में इक घरौंदा कर लूँगा मैं।

बरसों से खून बोतलों में बेचता आया हूँ,
गर रगों में बचा पाया, तो नया सहर दूँगा मैं।

कल ही तो नया कफ़न खरीद के लाया हूँ,
इस फागुन में जो कहना है, कह दूँगा मैं।

सूखे आँसुओं से ना रुकूँगा अब,मैं सवाली हूँ लहू का,
बहुत धड़क लिया सीने मे, अब बारूद सा जलूँगा मैं।

मत समझ के ये कोरी धमकी है मजबूर शायर की,
अबके गदर का किस्सा नहीं, हिस्सा बनूँगा मैं।


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4 comments:

Ankur Chandra said...

sahi hai guru...

manish said...

too good.i think it is best.

pushpak said...

Sahi hai Guru Is baar ...Gadar ka Remake Banayenge aur usmein Sunny Paaji waala Role aapko hi milega ...

Anonymous said...

sahi hai pushpak,
par amisha mere man ki honee chahiye...........