पथराई आँख है, हमें सोना नहीं आता,
हाँ आँसू जम गये, हमें रोना नहीं आता।
फिर चीर द्रौपदी का दुःशासन के हाथ है,
पर लाज बचाने कोई किशना नहीं आता।
फिर बेटा माँग बैठा है चाँद बाप से,
कैसे कहे ग़रीब, खिलौना नहीं आता।
उस ओर दीवाली है, मेरे घर में है फाँका,
मुझे मुल्क के ईमान पे बिकना नहीं आता।
कफ़न का इन्तज़ाम हो तो मौत माँग लूँ,
कैसे मरूँ के मुफ्त में मरना नहीं आता।
हाँ आँसू जम गये, हमें रोना नहीं आता।
फिर चीर द्रौपदी का दुःशासन के हाथ है,
पर लाज बचाने कोई किशना नहीं आता।
फिर बेटा माँग बैठा है चाँद बाप से,
कैसे कहे ग़रीब, खिलौना नहीं आता।
उस ओर दीवाली है, मेरे घर में है फाँका,
मुझे मुल्क के ईमान पे बिकना नहीं आता।
कफ़न का इन्तज़ाम हो तो मौत माँग लूँ,
कैसे मरूँ के मुफ्त में मरना नहीं आता।