बड़ी बेदर्द दुनिया है, बड़ा ज़ालिम ज़माना है,
न मैडम ने ये समझा था, न साहब ने ये जाना है,
लगेगी भूख ऐ अहमक, तो अंतड़ी आग उगलेगी,
ये कातिल पेट तेरा है, तुझे ये खुद पलाना है.
किसी ने भीख बांटी थी, किसी ने जोश बांटा है,
जो तू है होश का दरकर, तुझे कब होश बांटा है?
ये तेरा नून रोटी में, तेरा ही पसीना है.
तेरे खून का सालन, महफ़िल खूब बांटा है.
जो गर दाम हो मुट्ठी, सियासत जेब में तेरे,
न हिन्दू के ही अपने हैं, न मुस्लिम और ये तेरे,
सवाली खून के हैं ये, और ये लेकर ही मानेंगे,
न हम कल जान पाये थे, न आगे हम ये जानेंगे।
----विद्रोही भिक्षुक