आंसू अब न और बहेंगे, अब लब ना खामोश रहेंगे,
रस्ते अपनी राह बदलकर, अपनी मंजिल आप चलेंगे.
कलम-दवातें फूट पड़ेंगी, घर-घर बैरक बाक बनेंगे,
कागज़ पत्तर ढाल बनें तो, कलम से खंजर काट बनेंगे.
मर मर कर कितना थे जिन्दा, अब मरने के बाद जियेंगे.
गद्दे-चादर हाथ में ले लो, बने कफ़न ये साथ चलेंगे.
रस्ते अपनी राह बदलकर, अपनी मंजिल आप चलेंगे.
कलम-दवातें फूट पड़ेंगी, घर-घर बैरक बाक बनेंगे,
कागज़ पत्तर ढाल बनें तो, कलम से खंजर काट बनेंगे.
मर मर कर कितना थे जिन्दा, अब मरने के बाद जियेंगे.
गद्दे-चादर हाथ में ले लो, बने कफ़न ये साथ चलेंगे.