मंजिलों पर पहुँचने का दम था मगर,
राह खोने के ग़म से उबर न सके,
आसमाँ में उड़ने का दम था मगर,
हम ज़मीं पर ही अपनी ठहर न सके,
शमशानों में जीने का दम था मगर,
हो के अपने तो रह ये शहर न सके,
रात को चीर सकने का दम था मगर,
खोज तो हम अपनी सहर न सके,
हजारों-लाखों को गिनने का दम था मगर,
समेट तो हम अपने सिफर न सके.
राह खोने के ग़म से उबर न सके,
आसमाँ में उड़ने का दम था मगर,
हम ज़मीं पर ही अपनी ठहर न सके,
शमशानों में जीने का दम था मगर,
हो के अपने तो रह ये शहर न सके,
रात को चीर सकने का दम था मगर,
खोज तो हम अपनी सहर न सके,
हजारों-लाखों को गिनने का दम था मगर,
समेट तो हम अपने सिफर न सके.