मुझसे और मेरी लेखन शैली से परिचित लोगों को शायद ये विषय अटपटा सा लगे, या शायद ये भी हो सकता है कि कुछ लोग कुतूहलवश यह जानना चाहें कि कहीं मैं पाक-शास्त्र पर पारंगत होने ही तो यूं ही इतने समय से गायब नहीं रहा. न छिट्ठी, न पत्री, न तार, बेतार, न अता न पता और न ही विधिवत या स्फुट लेखन. और गाहे-बगाहे लौटा भी तो भिन्डी लेकर और वो भी भरवाँ....
वैसे मेरे जीवन चक्र कि गति इतनी वक्रीय, और कोणीय वेग इतना अनियत रहता है कि अभिकलन के तमाम सूत्र धत्ते से रह जाते हैं. खैर आत्म-लोकन मोड से मुद्दा मोड पर आते हैं. पिछली बार मैगी-वंदना से काफी देसी भावनाएं आहत हो गयी थीं और उनका कहना था कि ये सम्मान किसी स्वदेशी पकवान को मिलना चाहिए. अब स्वदेसी फास्ट फ़ूड तो होते नहीं और अधिकाधिक कुछ हुआ भी तो वो होगा डब्बाबंद तथाकथित करी(curry). तो पाक कला के क्षेत्र में स्वदेशी तरीके से की गयी हर हिमाकत को मैं पकवान कहता हूँ. अब पौने दो किलो तरकारी, डेढ़ मग बहते पानी में धुलकर, तिहत्तर मसाले डाल कर, और सवा दो तरीके से पका कर कोई फास्ट फ़ूड तो हरगिज़ न बनाएगा. वैसे इस सवा दो तरीके से पकाने के विषय में विद्वानों के कुछ मतभेद हैं और जिन बदनसीबों का हाथ पाक की महान कला में तंग है उनकी जानकारी के लिए यहाँ पर बताना अज़रूरी होगा कि पकाने कि भी रंगारंग विधियाँ हैं. जैसे कि भाप देना, उबलना, तलना, छौंकना, आंच देना और भून कर जला देना. इसमें से कर विधि का अपना रंग है जैसे कि भाप देने पर प्राकृतिक रंग कि प्रकृति नष्ट न होने पावे अथवा भून कर जलने पर जलायमान वस्तुएं अपनी अपनी प्रकृति को त्याग कर एकायमान, एकीकृत हो कर एक तत्त्व हो जाती हैं.
यहीं पर भिन्डी, माफ़ कीजियेगा भरवाँ भिन्डी बाकी पकवानों को मात देती नज़र आती है,
अव्वल तो ये की ये एक हरी सब्जी है और मम्मी त्रिवेदी का कहना है कि हरी सब्जी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है.
इसे बनाने में तमाम मानवीय मूल्यों एवं विशेषणों का भरपूर परीक्षण होता है. जैसे कि अनुमानन की कला, धैर्य, साहस एवं अवसरवादिता और हाँ यदि भारी स्पेटुला अर्थात करछुल का उपयोग किया जाये तो ये कसरत के काम भी आती है.
भरवाँ भिन्डी के रस्ते का मुख्य पड़ाव है -उसका मसाला बनाना. इसके लिए तीन भाग धनिया पिसा, दो भाग हल्दी, दो भाग पिसी सौंफ, दो भाग अमचूर लें, उसमे नमक और मिर्च स्वादानुसार मिलाएं, और हाँ कलौंजी न भूल जायें. और हाँ इन्हें आपस में मिला कर इतना बारीक कर लें की आपके हाँथ दर्द होने लगें.
उपरोक्त तरीके से मसाले बनाने के कई फायदे हैं, सबसे बड़ा जो मुझे समझ आता है वो है इससे भारत में साक्षरता बढ़ेगी. क्योंकि इतना सामान बिना कागज़-कलम याद रखना तो संभव नहीं लगता. और आपके अनुमान, धैर्य और साहस का परीक्षण भी हो ही चुका है.
भरवाँ भिन्डी के लिए भिन्डी काटना भी एक कला है. ज़रा सा ऊँच नीच हुआ नहीं की बन गयी वो टुकड़ा भिन्डी. भिन्डी कट भी जाये और पता भी न चले. तब तो हुई बात-ए-तारीफ. यानि के टेस्ट हो गया आपकी सुश्पष्टता की कला(art of precision) का भी.
अब आती है बारी मसाला भरने की और इस कला का भरवाँ भिन्डी के क्षेत्र में वही महत्व है जो की उत्तर प्रदेश बोर्ड की परीक्षा में हैण्ड-राइटिंग का. मसाला बना चाहे जितना जानदार हो पर जब तक वो सही से, खूबसूरती से और सफाई से भरा न जाये, मास्टर-साहब नंबर नहीं देंगे.
और अंततः बारी आती है उसे तलने की. इसे धीमी - धीमी आंच पर देर तक सेकना चाहिए, जब तक भिन्डी का रंग भूरा न हो जाये और आपके माथे से पसीने की पहली बूँद न टपक जाये. भिन्डी पूरी तरह तैयार होने के पश्चात एक भीनी सी सुगंध छोडती है. (सौंफ के भूने जाने की) जिसे सूंघ कर आप तुरंत अपने लिविंग रूम से उठ कर रसोई में पहुँच जायें. मस्ती से भिन्डी खाएं.
और हाँ बर्तन मेरे लिए छोड़ दें , आखिर मुझे भी तो कुछ काम करना है.
इति सिद्धम - कि भरवाँ भिन्डी बनाने ,खाने एवं बर्तन धोने से आपका बहुमुखी विकास होता है.... धन्यवाद, जय हिंद , जय भारत..